Friday, April 13, 2012


स्लेटी रात और काले पंख


तुम्हे बात करते सुनता हूँ ,

तो यूँ लगता है ,
सीने पर सिली जेब से ,
एक कबूतर निकला ,और उड़ गया ,
मैं देर तक खड़ा ,स्याह होते ,
आकाश को देखता हूँ ,
जमीन पर गिरे कुछ सलेटी पंख उठाता हूँ ,
और चला आता हूँ वापिस ,
अपने कमरे में,जहाँ अब ,
पूरी रात सुननी है ,अकेले मुझे
फडफडाते पंखो की आवाज़ |

कुछ भी मुकम्मल नहीं होता |


कि,कुछ भी मुकम्मल नहीं होता ,

सदा के लिए ,
उन्नतीस दिन कटा रहता है ,
एक स्लाइस चाँद से भी ,
और ,कुछ दिन तो होता है वह,
मेरे नाखून के नीचे बने ,
सफेद गोलार्ध सा ,
हम दोनों उसे देखते हैं ,
और वह हमें ,
बस ,तुम ढक लेती हो उसे नेलपालिश से ,
और ,मैं डाल लेता हूँ हाथ ,
पतलून की जेबों में |
****
सचमुच कुछ भी मुकम्मल नहीं होता
स दा के लिए ,
और कोई गोशा दिल का ,
भूरा हो जाता है समय के साथ ,
क्योंकि अब कोई भी नहीं रहता उसमें ,
खून के सिवा ,
तुम्हारी याद में धड़कने को बना है दिल ,
उसे नहीं पसंद ,
एक पम्पिंग सेट भर बने रहना
कल से काम पर नहीं आएगा वोह ,
कहा है उसने उलाहना देकर |
*****
कि ,सचमुच कुछ भी मुकम्मल नहीं होता ,
सदा के लिए ,
यक़ीनन यही वजह है ,
कि मेरी सोच के परदे पर ,
जब हंसती हुई भी आती है,
तुम्हारी तस्वीर ,
मैं छु सकता हूँ ,
तुम्हारी आँखों की कोर पर
झलकती ,गहरी जमी उदासी को |
*****
शायद यही वजह है ,
कि ,कुछ भी मुकम्मल नहीं होता ,
सदा के लिए |

Sunday, April 8, 2012




एक विंडचाइम,
बहुत सालों से ,
घर के दरवाज़े पर
लटकी है,मेरे कुल कद से ,
एक सेंटीमीटर ऊँची,
बिला नागा बजती है ,
जब भी मैं गुज़रता हूँ ,
इस दरवाज़े से हो कर ,और
अक्सर तो तब भी ,
जब मैं घर नहीं होता ,
न आया हुआ ,ना जाता हुआ |
दरअसल ,यह सिर्फ गुसलखाने की ,
टूटीयों की टिप -टिप ही ,
नहीं होती ,जो रात भर टपकती है ,
नीचे पड़ी प्लास्टिक की ,
बाल्टियों में ,और आप ,
आधी -आधी रात को ,
उठ बैठते हैं ,अक्सर तो
पूरी रात ही नहीं सोते |
ज्यादा आसान लगता है आपको ,
खुद को इन्सोम्निक बता कर ,
बड़े बाज़ार वाले केमिस्ट से ,
हफ्ते में दो बार नींद की ,
गोलियां मंगवाना ,बजाय
एक ही बार प्लम्बर बुला कर ,
सारी टूटीयां ठीक करवा लेने से |

२.
दरअसल आपके
और सिर्फ आपके सिवा ,
पुरे घर में ,कोई भी नहीं जानता ,कि
टूटीयां जब टपकती हैं,
बूंदें बन कर,स्मृतियों की बाल्टियों में,
तब नीमबंद आपकी पलकों से ,
एक समय भी गुज़रता है ,
सुरमचू की तरह ,और
याद आते हैं वह दिन,
जब आप नुक्कड़ों पर खड़े,
किसी परी चेहरा दोशीजा के ,
वहां से गुजरने का इंतज़ार करते थे,
जिसके एक नज़र आपको ,
देख लेने भर से ,दिन भर
प्रेम की बूंदें टपकती रहतीं थीं ,
दिल के मटके में |

३.
सच कहूं ,तो
आप इमानदार नहीं हैं ,
अपनी नींद के साथ भी ,
और जीना चाहते हैं ,
विंडचाइम और कालबेल ,
की घंटियों के बीच ही कहीं ,
अपने बचे हुए समय को ,
गहरी काली रातों में ,
सायं-सायं करती तेज़ हवा चलती है ,
और हवा से हिलती ,
विंडचाइम की पाइपें,
एक दुसरे से टकराती हैं ,
सर्द रातों में भी आप ,
दरवाज़ा खोल कर देखते हैं ,
जहाँ किसी ने ,
अब होना ही नहीं है |