Friday, April 5, 2013

कविता उदासी को बुनने का सुंदरतम नमूना है

शोक सपनों की दीवार की झीतों से रिस कर आता प्रकाश है .

जबकि सपनों में जाने से कहीं पहले,
देखे थे मैंने,
घड़े भी ,पत्थर भी .

पहली कविता लिखते हुए मुझे याद थी,
वह,जिसे नहीं पता था नुक्कर पर खड़ा कोई लड़का,
अपनी कविता लिखेगा उसके लिए,
वह रेलवे लाइन जिसपर आज आपको रुकना नहीं पड़ता,
समय की न्यूनतम इकाई में भी,
तब दिन भर कहीं से भी उग सकने वाली बेचारी भूख का "गया "थी,
मुक्ति एक सुंदर शब्द है .

अजीब है,
पर बहुत बेहतर तरीके से जानता हूँ,
कविता लिखना अपने हाथ से अपना गला घोंटते हुए,
अविरल आकाश से झरती गूं गूं की विवश आवाज़ है,कि
सुनना विवशता भी होता है .

थकी यात्रा करते हुए,
तुम्हारी उम्र में जुड़ जाते हैं,
तुम्हारी प्रतीक्षा के सारे वर्ष भी,कि
उन्होंने यूँ ही नहीं जोड़ा होगा,
प्रतीक्षा के साथ अनंत .

लिखते हुए मुझे अक्सर लगता है,
एक माँ का बच्चे के लिए जुराबें बुनने की तरह,कि
कविता उदासी को बुनने का,
सुन्दरतम नमूना है .
(उदास बुनती की स्वेटर सुंदर होती है )

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