Thursday, October 10, 2013

पिछले कुछ दिन से
एक अबोला है
मुझ में , उस में
हम बात ही नहीं करते |
दोनों देखतें भर हैं
एक दूसरे को ,भरी-भरी आँखों से
गोया ! याद करते हैं ,
बीते हुए को |
उन दिनों को
जब मैं लिए -लिए घूमता था
जेब में एक गीला सा प्रेम पत्र
और ,वोह हर सुबह निकलती थी ,
मेरे स्कूल युनिफोर्म से मिलते जुलते कपडे पहन|
पनवाड़ी की दुकान पर खड़ा मैं,
या मुनियारी की दुकान पर खड़ी वो
याद रहते थे हमें
एक दूसरे के टाइम टेबल
बेशक भूल जाएँ संस्कृत के पीरियड के दिन
संस्कृत की किताब ले जाना |
वोह कैसे दिन थे
यह कैसे दिन हैं
बेशक बहुत सा समय रीत गया है बीच से
पर ,अब भी याद हैं हमें
एक दूसरे के टाइम टेबल्स
मैंने जिस दिन सात बजे निकलना होता है
उस दिन वोह नौ बजे सो कर उठती है
चाहे १/३ लीव लेनी पड़े
जिस दिन उसे सात बजे जाना हो
मुझे आठ बजे तक सरदर्द होता रहता है
पर यह भी सच है
कि कुछ दिन से
अबोला है
हमारे बीच |

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