Thursday, October 10, 2013

उसके बहुत पिए होने की निशानी ,उसकी आँखों में तैरते लाल डोरे नहीं होते थे . उसकी अंग्रेजी होती थी ........उसकी पढ़ी हुई नामचीन कवियों की कविता की पंक्तियाँ होती थीं .कहावतें होती थीं . ऐसी ही एक रात उसने बताया ..............ने कहा है ,"ज़िन्दगी को मोमबत्ती की तरह जियो . इसे दोनों तरफ से आग लगाओ .........बेशक यह कम देर जलेगी,पर उस रौशनी में तुम्हारी आँखें चमक उठेंगी ." ऐसे वक़्त में ,मैं सिर्फ उसका चेहरा देखा करता था ........बोलते हुए शब्दों के जो परिंदे उसके चेहरे पर उड़ा और बैठा करते थे ........उनकी उड़ान देखता था ,और अलसाई थकी वापसी .ऐसे में एक दिन उसने कहा :-

बाहर अप्रैल की एक मीठी ठंडी शाम थी,
बहुत दिनों बाद पत्ते अपनी अपनी डालों पर लौट रहे थे,
स्पर्श की एक पुरानी जीवित पहचान के बावजूद,
वे पूछ रहे थे एक दूसरे से उसका नाम ,
एयरपोर्ट की कतारों में खड़े यात्रियों की तरह,
काउन्टर पर बैठा क्लर्क जब पासपोर्ट से नाम पढ़ते हुए भी,
सवालिया ज़बान में कहता है,"नाम ."

अपनी मर्ज़ी का पेड़ चुन कर,
उस पर नर्म हरी कोंपल की तरह उग आना,
अपने पिछले जन्मों को भूलते हुए,
एक नई यातना का चुनना है,
यह लगभग वैसा कुछ पाना है,
जो आप खो चुकते हैं बचपन से बुढ़ापे के बीच कहीं .

आप एक लंबे वकफ़े के बाद छूते हैं अपने प्रेम को,
लंबी आस्तीन वाली कमीज़ से बाहर झांकती आपकी उँगलियाँ,
नापती हैं स्पर्श को त्वचा की सौम्यता से ,
एक ठंडी सिहरन को अपने भीतर कहीं दबाते आप,
मुस्कुराते हैं एक देश के रहने वाले उन बाशिंदों की तरह,
जो मिलते हैं सात समुद्र पार कहीं .

"मछली री मछली तूने कितना जल पिया,
तू जाने या जल जाने "की तर्ज़ पर थोड़ी देर भरपूर साथ रहे लोगों की जेबों में,
एक दूसरे के साथ के टुकड़े भरे होते हैं,
जिनके साथ वे जीते हैं उम्र भर .

(बोलते बोलते वह अचानक सो गया ,देर तक मैं उसके चेहरे पर बैठे एक उदास स्लेटी कबूतर को देखा किया )

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