Thursday, October 10, 2013

आजकल सोचता हूँ,किसान के लिए वह दिन सबसे त्रासद होते होंगे ,जब उसने पृथ्वी का गर्भ बीजों से भर रखा होता है,आसमान पर स्लेटी बादल छाते होंगे और बिना बरसे आगे निकल जाते होंगे .उस स्लेटी स्याही से किसान के चेहरे पर लिखी जाती मायूसी क्या किसी लिपि में पढ़ी जा सकती होगी ......वे दिन कोठार से अनाज निकाल खाने के दिन होते होंगे .

पता नहीं क्यों पिछले कुछ दिनों से लगने लगा है ....कि कविता आकाश से उतरती है ..और कवि उस वक़्त एक स्टैनो से अधिक कुछ नहीं होता .इन दिनों आकाश से कोई कविता उतर नहीं रही ..........गोया यह कोठार से अनाज निकल कर खाने के दिन है .


लड़के की आँख से गिरा पानी,रुमाल में ज़ज्ब होता रहा | रुमाल शाम सा
स्लेटी हो गया |हाथ से छू लो,तो उँगलियाँ स्याह हो जाएँ |आवाजें कहें ....छू
सकते हो,दिल का दामन , .. हाथ को दूर रखो चेहरे से ,कि पता नहीं कैसे
विदा किये हैं, मुहांसे कल की डाक में डाल कर | चाँद खूबसूरत है,जो दूर से
देखो ...इतना कह कर लड़के ने फिर से,किस्सा विक्रम बेताल सुनाया :-

खुली पलकों में सुरमचू से फिरी रात ने,

आँख के तलवे काले कर दिए,

कोने में पड़े बाजे से

काली प्लेटों वाले कुत्ते ने,

सारी रात सुनाये पैदाइश से भी पहले गाये गये,

बेबस विरह के गीत,

आँख के कोनों में आई लाली को,

पलकों से छू लड़के ने

तेज़ चलती हवा को गाली दी,

पंखे का खटका दबाने के बाद,

कोशिश की पंख गिनने की .

पूरी रात बैठ ख्वाब की कुर्सी पर

पोंछ दिया भवों से टपकती उदासी को,

उँगलियों पर गिना कितने दिन दूर थी अमावस,

चांदनी रात के गाल पर हाथ फेर

रौशन होते देखा उँगलियों की पोरों को,

नमकदानी को उल्टा कर उलट दिया सारा नमक,

एक चुटकी जबान पर रख बदल दिया

इंतज़ार की रात का स्वाद,

लिपस्टिक की तरह होंठों पर चस्पां की,

दिन में चमकने वाली
,
दिलफरेब मुस्कान,

कमीज़ पर इस्त्री की और निकाल दिए,

रात के बल .

नीम के पत्तों की किनारी पर उँगलियाँ फेर,

काट दिया कोनों पे चमकती चांदनी को,

साबुन और पत्थर को घिस कर

पैरों से उतार दिए सफ़र के निशान

काफी सी भूरी उदासी को हल्का किया मिला के दूध

जेब में कलम टांगते हुए,

तय किया शाम को रोकड़ मिलाना,और

कचरे से बीन लिए हिसाब के कागज़ .

दिन भर धूप से मिलते हुए,

रेत की किरचों को छीलने दिया चेहरा आलू की तरह

शाम को चेहरे से उतार दिए उबले अंडे के छिलके

एक गिलास पानी पीने के बाद

दिमाग से झाड़ दिए मकड़ी के जाले,

अपनी गुद्दी पर मारा हाथ और कहा ,

तैयार हूँ में अगली रात के लि

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