दरअसल सबसे बुरा होता है,
कवि की नसों में दौडती कविता का मर जाना ,
यकीनन होते होंगे कवियों के खून में
लाल और सफेद रक्त कणों की तरह ही,
कविता के भी कुछ कण,
मस्तिष्क ,हृदय और सारे बदन में दौडती कविता ,
कलम थामे खड़ी उँगलियों तक पहुँचने से ,
ठीक पहले मर जाती है .
कवि एक अजन्मे बच्चे की मौत पर रोता ,
अकेला खड़ा एक थका आदमी है .
---------दीपक अरोड़ा -----
कवि की नसों में दौडती कविता का मर जाना ,
यकीनन होते होंगे कवियों के खून में
लाल और सफेद रक्त कणों की तरह ही,
कविता के भी कुछ कण,
मस्तिष्क ,हृदय और सारे बदन में दौडती कविता ,
कलम थामे खड़ी उँगलियों तक पहुँचने से ,
ठीक पहले मर जाती है .
कवि एक अजन्मे बच्चे की मौत पर रोता ,
अकेला खड़ा एक थका आदमी है .
---------दीपक अरोड़ा -----
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