Thursday, October 10, 2013

मुझे क्षमा करना ईश्वर !

यह जो एक आहत अजान जैसा एक स्वर,
तुम्हारी आँतों में उठ रहा है ,यह
तुम्हारे आहूत करने को गाया जाता कोई मन्त्र नहीं है,
मैं सच नहीं बुला रहा तुम्हें,
चौसर की एक बिगड़ी बाजी की गोटी सही जगह रखने को,

उन सब पलों में जब मैं समझता रहा,
ईश्वर एक अनंत में फैले उद्घोष का,
उन्मुक्तता से लिया जा सकने वाला नाम है ,
मुझे नहीं पता था तुम्हारे चेहरे पर उगी उन्मत मूंछों के बारे में,
जिन्हें तुम इतना कस उमेठते हो ,कि
कलाई से मोड़ा जाना नहीं रहता मुहावरे से अधिक कुछ भी .

मैं अनास्था के घोर समय में लेता रहा तुम्हारा नाम,
नहीं कि बहुत कठिन था वह समय,
गलत पढाते रहे वह सब जो कहते थे,
तुम एक बार ईश्वर कहते हो ,तो
सौ बार कहते हो प्रेम !!!

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