Thursday, October 10, 2013

और ,जिस दिन ,
कुल नौ रूपये चालीस पैसे देकर
रद्दीवाला,ले जायेगा ,
आपकी सारे जीवन में,
रची कविता ,
आप उसी कमरे में होंगे,
हवा में घुले -घुले से ,
थोडा सा हिस्सा ,
आक्सीजन ,थोडा सा नाइतरोजन ,
और ,बहुत सारा कार्बनडाईआक्साइड बने |
आप सुनेगें दस पैसे के लिए,
एक तकरार ,
अपने बेटे और रद्दीवाले के बीच ,
जिसमें आपका बेटा कहेगा
,"खुल्ले दस पैसे हैं नहीं"
और रद्दीवाला कहेगा ,
"यही तो कमाना है साहेब |"
हरे ,नीले ,काले या लाल ,
अक्षरों ,में लिखी ,
आपकी कविता ,
अंतत काम आएगी ,
मूंगफली लपेटने के |
आप गंगा में तैरती
अस्थियों सा अनुभव करेंगे ,
जिस दिन मूंगफली खाता -खाता कोई ,
अनायास ही ,
लिफाफा पढ़ कर कहेगा ,
वाह ! क्या शेर लिखा है यार !

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