अनिद्रा के तकिये पर सर रख,
बेहोश सोती है लड़की,
अर्धरात्रि के किसी अनचीन्हे पल में,
अपनी छाती पर टिक गये अपने ही हाथ को,
पा खोल देती है आँख,
बची रात में नींद तिलचिट्टों सी आँख में रेंगती है .
परिचित सह्याद्रियों के साथ के मील पत्थर,
स्मृतियों में कील से गढ़ते हैं,
रात गहराते किसी अदृश्य गंध सा,
सोते चेहरे पर मक्खियों की तरह बैठता है,
कोई अवांछित,परिचित स्पर्श,
नींद छत के पंखे के साथ घूमती है,
गोल ,काली और भूरी उन के गोले सी .
चेतना की परत को छूने लगती है,
छिपते सूर्य की रौशनी,
लड़की सैंडल के तलवे पर रखती है ऊँगली,
पूछती है सही जमीन का पता,
अगला कदम रखने को ,
मेट्रो की तीखी किनारी वाला कार्ड,
चढ़ने और उतरने की सही जगह बता देगा,
मिला तो .
लेम्प पोस्ट की रौशनी में चलते,
अपनी पदचाप से चौंक -नहीं डर जाती है लड़की,
मानती है मन्नत,
मत कहीं घर पहुँचने से पहले गुल हो जाए बत्ती,
अपने भीतर ही उग आये एक गहरा अँधेरा,
सारे अस्तित्व को घेर लेता है एक कुंडली दार अजगर,
टप्पे खाती फुटबाल सा कुछ,
पसलियों से बजता है धाड़ धाड़ .
घर लौटी लड़की सुनिश्चित नहीं होती लौट कर भी,
सोते हुए लेती है दो तकिये, एक सर के लिए ,एक खुद के लिए .
बेहोश सोती है लड़की,
अर्धरात्रि के किसी अनचीन्हे पल में,
अपनी छाती पर टिक गये अपने ही हाथ को,
पा खोल देती है आँख,
बची रात में नींद तिलचिट्टों सी आँख में रेंगती है .
परिचित सह्याद्रियों के साथ के मील पत्थर,
स्मृतियों में कील से गढ़ते हैं,
रात गहराते किसी अदृश्य गंध सा,
सोते चेहरे पर मक्खियों की तरह बैठता है,
कोई अवांछित,परिचित स्पर्श,
नींद छत के पंखे के साथ घूमती है,
गोल ,काली और भूरी उन के गोले सी .
चेतना की परत को छूने लगती है,
छिपते सूर्य की रौशनी,
लड़की सैंडल के तलवे पर रखती है ऊँगली,
पूछती है सही जमीन का पता,
अगला कदम रखने को ,
मेट्रो की तीखी किनारी वाला कार्ड,
चढ़ने और उतरने की सही जगह बता देगा,
मिला तो .
लेम्प पोस्ट की रौशनी में चलते,
अपनी पदचाप से चौंक -नहीं डर जाती है लड़की,
मानती है मन्नत,
मत कहीं घर पहुँचने से पहले गुल हो जाए बत्ती,
अपने भीतर ही उग आये एक गहरा अँधेरा,
सारे अस्तित्व को घेर लेता है एक कुंडली दार अजगर,
टप्पे खाती फुटबाल सा कुछ,
पसलियों से बजता है धाड़ धाड़ .
घर लौटी लड़की सुनिश्चित नहीं होती लौट कर भी,
सोते हुए लेती है दो तकिये, एक सर के लिए ,एक खुद के लिए .